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Vindhesh dixit

Romance

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Vindhesh dixit

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बेपनहा मुहाब्ब्त

बेपनहा मुहाब्ब्त

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अभी अभी तो सोया था मैं

उस नाचीज ने फिर से जगा दिया

अभी अभी तो संभला था मैं

कि उसने फिर से तोड़ दिया


और तुम बात करती हो मेरी 

की मैं तुम्हारे बारे में क्या जनता हूँ

मैं तुममें कोई छोटी मोटी शख़्सियत नहीं 

अपना खुदा देखता हूँ


कभी ख्याल भी नहीं आता मेरा उसे

मैंने उसे ये भी बता दिया

वक़्त बदलेगा मेरा भी एक दिन

मैंने उसे ये भी दिखा दिया


जब मिली दोबारा मुझे वो उसके ही शहर में

दूर से देख कर ही मुझे उसने पहचान लिया

और वो आवाजें देती रही मुझको

मैं सुनकर भी उसे नज़रदाज़ करता रहा


फिर अचानक से समाने आ खड़ी हो गई मेरे वो

मैं उससे मुहं छुपाने की हज़ार कोशिशें करता रहा

वो मुझे याद दिलाती गयी पुरानी बातें 

मैं उसे भुलाने की लाख कोशिशें करता रहा


और वो अपने घड़ीयाले आँसुओं से 

मुझे पिघलाने की कोशिशें करती रही

मैं उससे दूर रहने की कोशिशें करता रहा

वो मेरे पास आने की कोशिशें करती रही


और वो रो रो के अपनी दास्तान सुनती रही

मैं उससे पीछा छुड़ाने की सोचता रहा

और अचानक से उसने मुझे गले लगा लिया 

मैं पागल उससे घंटों सिसकता रहा


   


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