बेखबर राहें
बेखबर राहें
बेखबर है मंजिलें मेरी मुझसे
और राहें भी बेखबर है
आँखों के आगे से ओझल हो रहा
जैसे ख़ुशी का हर मंजर है
ख्वाब जितने भी बुने डर के पीछे ही
शायद अब तक छुपे
रो रही है आँखें लेकिन आँसू
एक न गिरे धीरे धीरे मेरे सपने
बस सपने ही बनकर रह गए।