बेढंगी
बेढंगी
अजब
इश्क़ है लोगों को
जमाने में दिखावे से
मुझको भी खींचते हैं
इस छलावे में ।
हर तरफ
जिस्म को संवारने ,
जंवा दिखने की कोशिशें तारी है
और एक में हूँ बेढंगी इस जमाने की शायद
अक्ल से पैदल, बड़ी बेचारी है।
जो खुश होती है
कानो के ठीक ऊपर
देख अपने बालो की सफेदी को
या उसके दिलबर की
दाढ़ी से झांकती सफेदी को ।
जनाब बख्श दीजिये
जमाने में मुझको न लीजिये
मैं इस उम्र के इश्क़ में पागल हूँ,
मैं जमाने की नहीं
मैं खुद में अपनी ही कायल हूँ।