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ajay singh Phogat

Drama

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ajay singh Phogat

Drama

बड़ी हुई

बड़ी हुई

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मेरी नन्ही-सी परी,

आज हो गई बड़ी,

बचपन में स्कूल,

न जाने के लिए,

कितना मुझसे लड़ी,

मेरी पीठ पर बैठकर,

याद करती थी कविता,

जो खुश होकर,

दौड़ी चली आती थी,

"देखो माँ मेंने इनाम जीता।"


लड़कपन में हर हफ्ते,

चोट का एक,

निशान लेकर आया करती,

और मेरी डाँट के डर से,

मुझे बताने से डरती,

आकाशवाणी की तरह,

बता देती थी सारी बातें,

अस्वस्थ रहने के कारण,

न जाने रोई कितनी रातें।


जब यौवन में आई,

तो मेरी बेटी हो गई जिम्मेदार,

गिरती रही प्रतयेक मोड़ पर,

लेकिन न मानी कभी हार,

उसे पता चले जीवन के,

सही मायने और करने लगा,

मुझसे बहुत प्यार,

उसके जाने के बाद,

मानो बन जाएगी उसके,

और मेरे बीच दीवार।


उसके जाने के पश्चात मैं,

किससे अपनी बातें कहूँगी,

मुझे समझ नहीं आता,

मैं क्या करूँगी,

कौन मुझे इतना खुश रखेगा,

और करेगा इतना प्यार,

घर को सूना कर देगा,

वो जो आते ही,

मचाती थी हाहाकार।


आज मेरी बेटी इतनी,

बड़ी हो गई कि,

ससुराल चली,

भारी हो रहा है मन,

देखो ये संध्या भी ढली,

"बेटी तुझे कभी न मेरी,

कमी का एहसास हो,

तेरा ससुराल इतना,

अच्छा और खास हो ।।"


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