बचपन खोया जिम्मेदारी पाई
बचपन खोया जिम्मेदारी पाई
जब हम बच्चे थे तो जीवन का आनंद पाया,
मम्मी पापा दादा दादी सभी का असीम प्यार पाया,
सारे दिन खेलते थे बहुत सारी चीजें तोड़ते थे
फिर प्यार भरी डांट के अलावा कुछ नहीं पाया,
मम्मी ने डांटा तो पापा ने प्यार किया,
दोनों ने डाटा तो दादा दादी ने प्यार किया,
लेकिन प्यार के अलावा कुछ नहीं पाया,
आस पास के बच्चों से साथ खेलते, कभी लड़ते कभी प्यार करते,
लेकिन कभी भी एक दूसरे के बिना एक पल नहीं रहते,
यही बचपन जिसमें हमने प्यार के अलावा कुछ नहीं पाया,
कभी खाना, कभी खेलना अपनी इच्छा के खिलौने मम्मी पापा से पाना,
न मिले तो दादा दादी से शिकायत करना,
यही बचपन जिसमें प्यार के
अलावा कुछ नहीं पाया,
बड़े हुए तो स्कूल जाना, शिक्षकों की डांट,
काम न पूरा किया तो मम्मी पापा को डांट,
बचपन का सारा प्यार खोकर जिम्मेदारी का एहसास पाया,
बड़े हुए तो स्कूल का गृह कार्य, पढ़ाई में प्रतियोगिता,
खेल में प्रतियोगिता, सभी की अपेक्षाएं, इन सब जिम्मेदारियों में
बचपन के प्यार को खोकर जिम्मेदारी का एहसास पाया,
बड़े हुए तो आपस में प्यार, कभी आपस में लड़ाई, कभी प्रतिद्वंद्विता,
कभी आपस में प्रतियोगिता, सभी चीजों को पाने की दौड़ में
बचपन का प्यार खोकर जिम्मेदारी का एहसास पाया,
जब हम बच्चे थे तो जीवन का आनंद पाया,
मम्मी पापा दादा दादी सभी का असीम प्यार पाया,