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Rupinder Singh

Children

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Rupinder Singh

Children

बचपन के दिन

बचपन के दिन

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रोते हुए जब हम सो के उठ जाते थे,

उसी समय सभी को घर में पास अपने पाते थे, 

खिलौनों से खेलकर घूमने हम जाया करते थे,

बाज़ार से कुछ ना कुछ लेकर ज़रूर आते थे I

वो भी क्या दिन थे यारों जब हम बच्चे हुआ करते थे !


स्कूल का वो पहला दिन आज भी हमें याद है,

"नहीं जाऊंगा स्कूल" कहने की वो जिद्द आज भी याद है,

लालच लेकर चीजों की जिद्द हम छोड़ दिया करते थे,

"जल्दी आएंगे लेने स्कूल से" सुनकर हम स्कूल जाया करते थे,

वो भी क्या दिन थे यारों जब हम बच्चे हुआ करते थे!


जब गर्मियों की छुट्टियां आती थी,

खेल कूद व घूमने का भरपूर समय साथ लाती थी,

नानी के घर छुट्टियां बिताने हम जाया करते थे,

वो भी क्या दिन थे यारों जब हम बच्चे हुआ करते थे!


टीवी था तब मनोरंजन का साधन,

इंतज़ार रहता था "शक्तिमान" और "शाका लाका बूम बूम" का,

चाह थी उस जादुई कलम की, और शक्तिमान जैसे घूमने का प्रयास था,

हास्य के कुछ नाटक देख लोटपोट हम हुआ करते थे, 

वो भी क्या दिन थे यारों जब हम बच्चे हुआ करते थे !


अब हास्य के पल बहुत कम मिलते हैं जिन्दगी में,

नौकरी व भागदौड़ से फुर्सत के पल मिलते हैं बड़े नसीब से,

ज़िन्दगी में इतने इम्तहान जितने स्कूल में ना होते थे,

वो भी क्या दिन थे यारों जब हम बच्चे हुआ करते थे!!

   


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