STORYMIRROR

DrAtul Chaturvedi

Children Stories Fantasy

3  

DrAtul Chaturvedi

Children Stories Fantasy

लौटते बचपन में

लौटते बचपन में

1 min
266

बच्चे नहीं समझते

बड़ों का मायावी संसार

वे ठुमक कर चल देते हैं कहीं भी

उठा लेते हैं कुछ भी

खाते हुए झूठा उन्हें नहीं सूझता

जाति का बोध

गोदी में जाते हुए नहीं होता

मैले कपड़ों का अहसास

वे सिर्फ स्नेह की गंध को

पहचानते हैं


पंछी हैं वे बैठ जाते हैं किसी भी

डाल पर

चुग लेते हैं चॉकलेट

कुतर लेते हैं बिस्कुट

उनके दिलो दिमाग पर नहीं लिखा

भेदभाव की इबारत का ज़हरीला

इतिहास


काश हो जाये हमारी भी दुनिया

बच्चों सी मासूम और निश्छल

उसमें भी पसर जाए उनकी

किलकारियाँ

निर्दोष शैतानियाँ

नटखट चंचलताएँ

तो ले सकें सांस हम जी भर कर


ठहाके लगा सकें खुल कर

बहा सकें कागज़ की नावें

ढहा सकें रेत के घर

अहंकारों को बता कर धता

दीवारों को धकेल कर परे

बना सकें उल्लास और उमंग का नीड़

अपने नन्हे हाथों से


एक बार फिर लौटे बचपन तो

छतों के फासले लांघ

अमीरी के मांझे में

गरीबी की सद्दी लगा

उड़ा सकें सबसे ऊंची साझा पतंग...



Rate this content
Log in