रिश्ते
रिश्ते
कई रिश्ते होते हैं रेशम से
कुछ उलटबांसी से
कुछ रिश्ते सीढ़ी होते हैं
जिन पर चढ़कर सुस्ता सकते हैं।
आप निश्चिन्तता की खुली धूप में
निभाने होते हैं कुछ मजबूरी में
कुछ न निभा पाने की कसक
सालती रहती है आजीवन।
हर रिश्ता एक भूल भुलैया है
जिसे पाने के लिए खोना होता है
स्वयं को पहले
अजब त्रासदी है यह
गजब कहानी है रिश्तों की।
जिसमें पता ही नहीं चलता
कौन नायक बदल जाता है
खलानायक में
और किस का चरित्र
ओढ़ लेता है खामोशी।
कथा कब ले लेती है मोड़
हम बूझते रह जाते हैं
अंत और तलाशते
रह जाते हैं सन्देश
छुपे मन्तव्यों के।
