बुढ़ापे की सनक और मेरी अम्मा
बुढ़ापे की सनक और मेरी अम्मा
बिठा के मेरी अम्मा मुझे अपनी कहानियां सुनाया करती थी,
मैं कुएं में कूद जाऊंगी यही गीत गुनगुनाया करती थीं।
दिन भर नए पकवानों के तरीके सिखाया करती थीं,
जो ना सुनते कभी हम तो ससुराल में पड़ेंगे डंडे
जिसका वो खौफ दिखाया करती थीं।
सीधे पल्लू वाली साड़ी में मोड़ के रुपया खोसी रहतीं,
जो मांगा एक रुपया तो पैसे पचास ही देती थीं।
पापा जो आते घर पर वो शिकायत सबकी लगाती थीं,
अब मैगी नहीं देंगे बनाकर, मै मन ही मन बुदबुदाती थीं।
मम्मी से थोड़ा बनती कम थी,
पर बिना उनके रहती अम्मा की आंखे नम थी,
शौक उनको बस मिठाइयों का था,
सरदर्द हम सभी को उनकी दवाइयों वाली आदत से था।
रह रह कर सनक भी जाती थी,
मेरा घर ले जाओगे सभी यही कहकर चिल्लाती थी,
आज चली गई जो दूर हमसे उनकी बाते सारे याद आती है,
मेरी अम्मा मुझसे दूर हो गई,
यादों में अम्मा अब भी जिद करती जाती है।