बचपन
बचपन
मुझ को भी वो पंख दो मैया
दूर गगन तक उड़ आऊँ
आसमान में टँगे सितारे
चाँद सितारे ले आऊँ
मुझ को तुम एक तितली कर दो
वन उपवन मैं लहराऊँ
डाल डाल जो फूल खिले हैं
उन संग मैं भी मुस्काऊँ
मुझ को मीठी कलरव दे दो
बन चिड़िया मैं चहकाऊँ
खोल के पिंजरे की मैं ताली
यहाँ वहाँ पर इठलाऊँ
क्यों छीने हैं पंख ये मेरे
क्यों पिंजरे में कैद किया
नन्हे मुन्ने बालक से क्यों
बचपन तुमने छीन लिया
नहीं चाहिए मोटे बस्ते
बोझ से मुझ को लगते हैं
थामे रहता दिन भर इनको
कंधे बहुत ही दुखते हैं
थोड़ी सी शैतानी मेरी
मुझ को वापस कर दो ना
बचपन में क्यों बड़ा बनाया
फिर से बच्चा कर दो माँ
जी लेने दो बचपन मुझ को
मैं ख़ुद आगे बढ़ जाऊँगा
यकीं करो माँ एक दिन मैं भी
सारी किताबें पढ़ जाऊँगा
पर आज जो मुझसे छीनोगी
तो ये बचपन मर जायेगा
तेरा नन्हा लाल अचानक
पत्थर बुत बन जायेगा..