बचपन का ख़्वाब
बचपन का ख़्वाब
बचपन का एक ख़्वाब
बचपन के साथ ख़त्म हुआ
हत्यारे तो बचपन के हो तुम
बचपन में जीना था
बड़ा कहकर बचपन ही
रोदं दिया रोज़ रोज़ ख़ुद
को ख़ुद में ही खोना पड़ा
ज़िन्दगी मेरी थी तो क्या
जीना ख़ुद के लिए था
दूसरों के लिए शुरु कर दिया
औरत की ज़िन्दगी भी क्या है ?
औरत की ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई
औरत से उम्र ना पूछना जंनाब
हंस कर वो नहीं बताएंगी
जितना वो ख़ुद के लिए जीती
वहीं तो बताएंगी।