STORYMIRROR

संजय कुमार

Abstract

2  

संजय कुमार

Abstract

बैरी चाँद

बैरी चाँद

1 min
96


समझा था मैंने जिसे एक

छोटा सा दिल का टुकड़ा

था वो मेरे दिल की जान।

क्या कहूं,था मैं जिसके पीछे

भाग रहा बनकर दीवाना

वह निकला कैसा बैरी चाँद।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract