बातें
बातें
अंतर्मन की बातें
सुनाई पड़ती हैं जोर जोर से
चिल्लाती हैं, चीखती है
सच्चाई बयान करती हैं।
फिर सो जाती हैंअंतर्मन में,
करवटें बदलती है रात भर
चौंककर निहारती हैं
इधर उधर देखती हैं।
शायद नींद खुल जाए
झकझोरती हैं अस्तित्व को
पुकारती है व्यक्ति को,
मन अनसुनी कर देता है आवाज
सोचेगा क्या समाज।
क्या कहेंगे दुनिया वाले
इसी उधेड़बुन में,
बंद कर लेता है अपने कान,
आवाज गले में रुक जाती है।
बेचैनी बढ़ जाती है
बढ़ता जाता है इंतजार
टूटते जाते हैं तार,
मन और अंतर्मन के द्वन्द में
फंस जाती है अंतरात्मा।
इस चक्रव्यूह से निकलने का
कहीं तो दिखे कोई रास्ता
धुंध की रात बीत जाए
सच का सबेरा आए।
अन्तर्मन की भावना,
मन मंदिर बन जाए।