बारिश
बारिश


जमीन सुखी है,
प्यास नहीं बुझती है,
बादल नहीं दिख रहा
तापमान आकाश छू रहा,
हर तरफ यही तड़प,
भला बादल बरसेगें कब।
किसान परेशान,
बिना बारिश कैसे बोए खेत,
अगर ऐसा ही चला,
तो सुखे की आशंका,
कहां से आएगा पैसा,
जिससे कर्ज चुकेगा पहला,
बच्चों को फीस,
घर का खर्चा,
जो हाल बुरा करता।
प्रेमी-प्रेमिकाओं के भी बुरे दिन,
घर से कैसे निकले बाहर,
जो मज़ा बारिश में भीगने का,
एक दूसरे को छेड़ने का,
बिजली के कड़कने का,
प्रेयसी का प्रेमी के गले लग जाने का,
और फिर दोनों का एक हो जाने का।
प्रकृति भी निराश,
बस पानी की है तलाश,
पेड़ पौधै सूख रहे,
त्राही त्राही कर रहे,
नये फूल नहीं खिल रहे,
नीचे जमीन तप रही,
उपर आसमान तप रहा,
न जाने उपर वाला
क्यों संकोच कर रहा।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों,
गिरीजाघरों और सब जगहा,
हो रही प्रार्थना सभा,
कि ऊपर वाले,
अबकी बार हमको
इस प्रकोप से बचाले,
आगे से न करेंगे
प्रकृति से छेड़छाड़,
पेड़ों को पालेंगें
अपने बच्चों के माफिक।