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अनजान रसिक

Abstract

4.8  

अनजान रसिक

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बारिश के इस मौसम में

बारिश के इस मौसम में

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बारिश की रुत में, पृथ्वी के सौंदर्य में लग जाते चार - चाँद,

पुलकित ह्रदय से स्वागत करते फुहारों का, जो मन थे अशांत.

पकोड़ों से कभी,कभी इलाइची वाली चाय से महक उठती रसोई,

भीगी-भागी रहती सड़कें, छाते ले कर घूमता दिखता हर कोई.

पापीहे की पीहू- पीहू और मैंढक की टर्र - टर्र की सरगम,

मयूरों के रंगीले नाच और खेतोँ में हरियाली का उद्गम.

रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडरातीँ,करने फूलों का रसपान,

ग्रीष्म ऋतु के ताप से मुक्त हो, करते सब बसंत ऋतु का गुणगान.

ताप झेला जिन्होंने बहुत, प्रफ्फुलित उनका मन

 हो उठता,

सतरंगी इंद्रधनुष अपनी मनमोहक छटा जब पृथ्वी पे है बिखेरता.

सरसों की फसल खेतोँ को पीताम्बर रूप दे देती,

पत्तों पर बारिश की ठहरी बूंदें मोतियोँ समान प्रतीत होतीं.

करवट ले लेता मौसम तो बदलता लोगों का भी मिज़ाज़

पसीना पोंछते थक गए जो,नाचने लगते देख बसंत का आगाज़ .

नाव चलाते बच्चे सड़कों पे तो चहक उठता सारा प्रांगण,

कलरव करती हुई चिड़ियाँ सुरमई कर देतीं सारा वातावरण.

बारिश की ऋतु, बसंत का मौसम जिसका होता सबको इंतजार,

इस तरह संग ले आता बेशुमार खुशियों का उपहार.



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