बाबूजी
बाबूजी
मेरे घर का आंगन मां हैं
और घर का द्वार हैं बाबूजी।
मां की चूड़ी, बिंदी, कंगन।
खुशियों की डोर हैं बाबूजी।।
कभी कभी मां डांट लगातीं।
शांत स्वभाव हैं बाबूजी।
मां घर की हैं अन्नपूर्णा।।
और धनवंत्री हैं बाबूजी।।
मेरे घर का आंगन मां हैं।
और घर का द्वार हैं बाबूजी।
मां ठंडी बयार सा झोंका।
सर पर जैसे बरगद बाबूजी।।
मेरी जिद्द पर मां सकुचाती सी।
और जिद्द पूरी करते बाबूजी।।
हमें छांव देने की खातिर।
धूप में रहते बाबूजी।।
मेरे घर का आंगन मां हैं।
और घर का द्वार हैं बाबूजी।
जबसे देखा,जाना मैने उनको।
अडिग रहे हर पथ पर बाबूजी।
भटक न जाऊं जीवन पथ पर।
यही सीख सिखाते बाबूजी।
जीवन में जो भी कुछ कर पाई।
उसका आधार हैं बाबूजी।
मेरे घर का आंगन मां हैं।
और घर का द्वार हैं बाबूजी।
