अज़मेर वाले ख्वाज़ा जी
अज़मेर वाले ख्वाज़ा जी
आओ आज हम आपको, एक सूफी संत की चरित्रावली सुनाते हैं।
नाम है उनका मुईनुद्दीन चिश्ती, अजमेर वाले ख्वाज़ा जी कहलाते हैं।।
जन्म हुआ ईरान देश में ,शीशतान प्रान्त के समर गांव में ।
माता थीं "बीबी नाहेनूर" और पिता "गियासुद्दीन"जी कहलाते हैं।।
18 अप्रैल 1142 जन्म तिथि है इनकी, परिवार खुरासान में बस गया।
तेरह बर्ष की उम्र में ही, पिता का साया जिन पर से हट गया।।
एक छोटा बाग और आटे की चक्की, जो पानी से चलती थी।
प्रभावित हो संत "इब्राहिम कंदोजी" से, विरासत गरीबों को लुटा दी थी।।
चल पड़े ज्ञान की खोज में, पहुँचे बुखारा और समरकंद में।
बने मुरीद "ख्वाज़ा उस्मान हारुनी" के, जो है बसते हारून ग्राम में।।
20 वर्ष 6 माह शरण में रहकर,इल्म-ए- रूहानी दौलत को पाई है।
पीर-ओ-मुर्शिद की कब्र मक्का-मदीने में, जो चिश्तिया शाखा के अनुयाई हैं।।
चल पड़े हरात निकट चिश्त ग्राम में, बन गए मुरीद ख्वाज़ा "हिमामुद्दीन बुखारी" के।
रूहानी-दौलत का मिला खजाना ,जो भी पहुँचा बेगरज ही लुटाई है।।
किया पालन गुरु उपदेश का, गरीबों और लाचारों की खिदमत करना।
मुहब्बत का है पाठ पढ़ाया, बुराइयों से बचना और तकलीफ में साबिर रहना।।
52 वर्ष की उम्र में चल पड़े, अजमेर प्रान्त को, जो उनको है भाया।
सुन मन्दिर में भजन-कीर्तन, कव्वाली का रुख है अपनाया।।
उर्स का समय नियत कर, रात्रि 11:00 बजे से प्रातः 4:00 बजे का नियम है बतलाया।
आज भी जुमेरात को, कव्वाली की महफिल ने अजमेर शरीफ है चमकाया।।
बिताया जीवन दरवेश बन, संसारिक सुख उनको है नहीं भाया।
दयालुता सूर्य जैसी, जमीन की सी खातिरदारी, मुसीबतों का सामना करना, तीन इनायतों को है बतलाया।।
न किया कभी भी भर-पेट भोजन, कई दिनों तक भूखे वो रहते।
मिल जाती ग़र सूखी रोटी, पानी में भिगो उसको ही खाया।।
पूरा जीवन एक वस्त्र पहन, धोकर उसको पहनते, फटने पर पैबंद हैं लगाते।
इंतकाल में जब तोला उसको(बस्त्र), साढ़े बारह सेर वजन हो गया।।
दो बार पढ़ते कुरान-शरीफ ,24- घंटे बाद कोठरी से बाहर वो हैं निकलते।
शिष्य बने "कुतुबुद्दीन" उनके, 20 वर्ष उनके खिदमत में है बिताया।।
कभी भी अपने स्वास्थ्य की दुआ न माँगते, माँगते सिर्फ दुआ दर्द की।
दर्द से ईमान पैदा होता, गुनाहों से इंसान को पाक-साफ है करवाया।।
परिवार में चार सन्ताने उनकी ,तीन पुत्र एक पुत्री, जिन पर उनकी थी रहमत।
पुत्र ख्वाजा फकरुद्दीन, अवूसईद,हिसामुद्दीन,पुत्री हाफिज़ जमाल नाम है कहलाया।
पाठ पढ़ाया न लगाना दिल दुनिया से, जो सब है मिट जाती, हौसले- हिम्मत से काम है लेना।
इनायते देकर 91 र्बष में," फ़नाफिलशेख से फ़नाफिल्लाह" हो करके दिखलाया।।
दरगाह "अजमेर शरीफ ख्वाज़ा" जी की, जब तक सूरज-चाँद रहेगा।
भरते रहेंगे झोली सबकी, "नीरज" नतमस्तक जिसका शीश रहेगा।।
