अव्यक्त प्रेम
अव्यक्त प्रेम
प्रेम तो है शाश्वत सत्य
ये नहीं होता कभी असत्य।
प्रेम का जहां हैं वास
ईश्वर का वहां हैं निवास।
प्रेम नहीं कोई आकार
वो तो हैं निराकार।
प्रेम पूरे जगत में हैं सर्वोपरि
चारों ओर हैं सर्वव्यापी।
प्रेम राधा कृष्ण का हैं रूप
अन्तर आत्मा का साक्षात स्वरूप।
प्रेम की हैं अपनी परिभाषा
जिसकी नहीं कोई भाषा।
प्रेम तो हैं अव्यक्त
जिसे कोई नहीं कर सकता व्यक्त।