अविरत
अविरत
बर्फ की चादर बिछी है पहाड़ों पर
एक अरमान फिर भी मचल रहा है।
कोहरे की दीवार है मकानों पर
एक दिया फिर भी जल रहा है।
जम सा गया है झरनो का पानी
एक आंसू फिर भी निकल रहा है।
पहाड़ों के पत्थर है पड़े नदियों पर
एक पत्थर फिर शिव बन रहा है।
बर्फ की चादर बिछी है पहाड़ों पर
एक अरमान फिर भी मचल रहा है।
कोहरे की दीवार है मकानों पर
एक दिया फिर भी जल रहा है।
जम सा गया है झरनो का पानी
एक आंसू फिर भी निकल रहा है।
पहाड़ों के पत्थर है पड़े नदियों पर
एक पत्थर फिर शिव बन रहा है।