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ANAND NIGHOJKAR

Abstract

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ANAND NIGHOJKAR

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दरकती बूंदें

दरकती बूंदें

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पानी की लकीरों ने तक़दीर बदल दी उनकी,

आँखों से बरसा तो तस्वीर बदल दी उनकी।


ज़मीन पर पड़ीं थी कुछ सूखी हुई हसरतें 

आसमां से बिखरा तो रंगत बदल दी उनकी।


आईने पर रुका था एक अक्स धुंधला सा

हाथों से फिसला तो सीरत बदल दी उनकी।


वक्त के दरीचों में रखा था कोई हूनर बाकी

बहा दीवारों से तो नियामत बदल दी उनकी।


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