अविभाज्य
अविभाज्य


जीवन में सुख-दुख दो भाई-बहन की तरह होते हैं।
एक जीवन के चारों ओर दो जीवन निर्मित होते हैं।
एक को उदासी कहते हैं, जो बुरे वक्त की याद दिलाती है।
और दूसरा सुख है, जो अनुभूति का अगला स्तर है जो
कुछ दुखों को दूर करने या कुछ नया हासिल करने से उभरता है।
दुख के बिना सुख क्या है, यह समझना बहुत कठिन है और
यदि सुख न आए तो हम यह नहीं समझ सकते कि दुखों से पार पाने की हमारे पास कितनी शक्ति है।
सुख-दुःख दोनों ही हमारे छाया साथी हैं, जीवन के अभिन्न अंग हैं।
न सुख हो न दुख हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है।
असली इंस
ान वही है जो दुःख के समय भी सीधे खड़े रहने की क्षमता रखता हो।
जीवन का दायरा बहुत छोटा है, हमें जीवित रहने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है।
कभी हम जीतते हैं, कभी हम हारते हैं।
उदासी हमेशा के लिए नहीं रहती है।
जैसे रात बीतती है और एक नई रोशनी का उदय होता है,
वैसे ही खुशी के बादल उदासी के आकाश से टूट कर दिल के आकाश में तैरते हैं।
समय के साथ चलना बड़ी बुद्धिमानी की निशानी है।
तो जैसे हमें खुशियों को अपनाना है, हमें दुखों को भी स्वीकार करना है और आगे बढ़ना है,
समाधान तलाशने होंगे और दुख के बाद सुख की प्रतीक्षा करनी होगी।