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एम के कागदाना

Abstract

4.4  

एम के कागदाना

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औरतें

औरतें

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कभी सखियों संग 

चबुतरे पर बैठकर औरतें

गुनगुना लेती थीं


लोकगीतों में अपने दुख

फिर सहज होकर

जुट जाती थीं घर के धंधे में

कभी बतियाती थीं चूल्हे संग

बताती थीं उसे कि


हम भी जलती हैं तुम्हारी मानिंद

कभी जला देती थीं

चूल्हे में लकडियों संग शिकायतें

 कभी हारे सी मंद मंद जलती

और उसे बताती मैं भी तुम सी हूँ


कभी घर की चक्की में

उलहाने पीस डालती थीं

कुएँ तो खत्म हो गए

खत्म नहीं हुई 

मगर औरतों की पीड़ा


सखियों संग फैंक आती थी

कुएँ में दुखों को

मगर अब 

कहाँ फैंके अपनी शिकायत

पति को दोस्त बनाये तो


वो चिल्ला पड़ते हैं

ऑफिस की थकावट का

बहाना लगा दूसरी औरतों के

इनबॉक्स में घुसे रहते हैं


जब पत्नी अपनी पीड़ा की टोकरी

किसी दोस्त के इनबॉक्स में

रिताना का प्रयास करती है तो

उनके पासवर्ड चुराकर

उनकी निगरानी करते हैं


उसने दुखों को घटाने के लिए

 चिल्लाना शुरू कर दिया तो

अब पुरुष कहता है कि

औरतें पहले सी नहीं रही।


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