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एम के कागदाना

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एम के कागदाना

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कल क्या बदलेगा

कल क्या बदलेगा

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कल क्या बदलेगा

क्या बदलेगा कल

वही सर्द सुबह 

वही दोपहर

और वही संध्या

वही हम होंगे वही तुम

नये साल की मुबारकबाद

देंगे एक दूसरे को 

हर साल की तरह

सूर्य उदय होगा

और चला जायेगा

पश्चिम की ओर

निभा देगा अपना कर्तव्य


एक पिता की मानिंद

धरती भी अपने पथ पर

चक्कर काटती रहेगी

गृहिणी के मानिंद

सर्द हवाओं के चलते

सब चले जायेंगे

अपने अपने काम पर

कुछ मनचले 

कुछ मनचले

नववर्ष के बहाने

फिर नशे की

आड़ लेकर 

नोच डालेंगे

किसी बेबस बच्ची को

हम फिर मोमबत्तियां लेकर

खड़े हो जायेंगे


किसी पार्क में

या जुलूस निकालेंगे

सरे बाजार

हमें महज कलेंडर 

नहीं बदलना

वाकई हमें बदलना है

तो बदलना होगा

इस मानसिक रोगी समाज को

बदलना होगा हमें स्वयं को

नये साल से देने होंगे

हमें बच्चों को संस्कार

ताकि हमारी बच्चियाँ भी

मना सकें हर उत्सव

और और और

वो घूम सकें इस

पृथ्वी पर बेधड़क



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