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Shubham Kadam

Drama Inspirational

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Shubham Kadam

Drama Inspirational

और क्या देखना बाकी रह गया...

और क्या देखना बाकी रह गया...

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जिंदगी के एक पड़ाव के बाद,

कुछ उतार

और कुछ चढ़ाव के बाद,

मैंने खुद से

एक सवाल पूछा,

बस...अब और क्या

देखना बाकी रह गया ?


सवाल काफी सरल

और सादा था,

पर जवाब मेरे पास,

ना ही पूरा

और ना ही आधा था,

ग़हरी सोच में डूबा मैं

अपने अतीत में जा पहुंचा,

जहाँ छेड़ी थी जंग इस जिंदगी से,

उस मुकाम पर आ पहुंचा।


अपनी छोटी- सी कश्ती मे

उम्मीदों का लंगर लिए,

इस ज़रूरी सफ़र पर

मैं निकल पड़ा था,

मतलबी लोगों से भरें

इस विशाल समंदर के सामने

क्या टिक पाऊंगा ?

- मन मे ये इक सवाल बड़ा था !


बाप के कंधे चढ़के

साहिल से समंदर तो

कई बार देखा था,

लेकिन अब अकेले ही गोता लगाकर,

उसकी गहराई को नापने का

वक़्त आ चुका था।


सफर की कई सर्द रातो में

भूख़ की चादर ओढ़कर

चैन की नींद सोता था,

और कई रातो में तो

माँ की उन मीठी लोरियों

को बिलख - बिलखके रोता था !


इस पड़ाव में

कई लोग मिले,

कुछ अच्छे, कुछ बुरे,

कुछ झूठे तो कुछ सच्चे,

पर सीख़ तो तब मिली

जब पता चला,

अपना मतलब निकाल लेना ही,

सबका मतलब था।


एक - एक कदम बढ़ाकर,

मैंने ख़ुद को इस भीड़ से

उभरते हुए देखा है,

ख़ुशहाल जिंदगी कमाने के लिये,

ख़ुद को जिंदगी की खुशियाँ

ख़र्च करते देखा है !


भीड़ से उभरते - उभरते,

ख़ुद को इसी का हिस्सा

बनते हुए देखा है।

कामयाब इंसान बनने के

इस सफ़र में,

कई बार ख़ुद को

शैतान बनते देखा है !


आँखें नम हुई

और मुझसे कहने लगी,

वैसे तो हमने

बहुत कुछ देखा है,

पर हमने अब तक

सबकुछ कहाँँ देखा है ?


पर्दा आँखो का

हटा कर तो देख !

इस खूबसूरत दुनिया का

एक नजारा मुझमें

समाँ कर तो देख !


ओ खुद से नफ़रत करने वाले !

सिर्फ एक बार

ख़ुद को प्यार से देख !


जब तेरे मन का

मुरझाया फूल

आशा की किरण से खिलेगा,

तब तुझे तेरे सवाल का

जवाब मिलेगा !

बस...अब और क्या

देखना बाकी रह गया...।


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