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Shivam Madrewar

Tragedy

4  

Shivam Madrewar

Tragedy

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं

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दिनभर सपनो के पीछे हम दौड़ते हैं,

अख़िर असफलता हम पाते हैं,

रात को ये आँखे रोते रोते सोते हैं,

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं ।


हम आसमान के तरफ़ देखते हैं,

हारकर भी दुनिया के सामने रोते हैं,

देर रात तक हम उसी के बारे मैं सोचते हैं,

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते है ।


हार मान कर भी हम सर उठाते हैं,

वो नाम पर लगा हुआ कलंक हम मिटाते हैं,

वहाँ तक पहुँचने से पहले ही डर जाते हैं,

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं ।


जीत की आशा हम दिल में रखते हैं,

रात का दिन भी हम कर देते हैं,

आशा की किरण हम ढूँढते ही रहते हैं,

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं ।


जहाँ से शुरु किया था वहीं पे आ जाते हैं,

जाते जाते रास्ते भूल हम जाते हैं,

कोशिशें भी घुटने टेकती हैं,

और खिलौनों की तरह सपने टूट जाते हैं ।



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