असमंजस
असमंजस
गहरे सोच मे डूब गया,
आज हवाओं से जो बात हुइ,
हौले से यह मन मुसकाया,
न जाने कैसी बात हुइ।
और ज्यों ही चाँद पे आँख टिकी,
दिल ज़ोरों से घबराया।
मानो बचपन लौट रहा हो फिर से,
दिल को खूब समझाया।
अजब खामोशी चारो ओर की,
मन के तार छेड भागी
चाह के भी मैं रोक न पाया,
थी भी आखिर परायी,
बीता सुनहरा पल मानकर
लौटा मैं सोने को,
पर भाग गयी मेरी सोच उनके संग,
खुले सपने बुनने को।
