STORYMIRROR

Pratham Kumar

Abstract Classics Fantasy

4  

Pratham Kumar

Abstract Classics Fantasy

असमंजस

असमंजस

1 min
211

गहरे सोच मे डूब गया,

आज हवाओं से जो बात हुइ,

हौले से यह मन मुसकाया,

 न जाने कैसी बात हुइ।


और ज्यों ही चाँद पे आँख टिकी,

दिल ज़ोरों से घबराया।

मानो बचपन लौट रहा हो फिर से,

दिल को खूब समझाया।


अजब खामोशी चारो ओर की,

मन के तार छेड भागी 

चाह के भी मैं रोक न पाया,

थी भी आखिर परायी,


बीता सुनहरा पल मानकर 

लौटा मैं सोने को,

पर भाग गयी मेरी सोच उनके संग,

खुले सपने बुनने को।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Pratham Kumar

Similar hindi poem from Abstract