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अनिल कुमार निश्छल

Abstract

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अनिल कुमार निश्छल

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असली कुम्भकार-पिता

असली कुम्भकार-पिता

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माँ ने तो बस क्षीर पिलाया

पिता भी सम्बल देता है

माँ ने सच-झूठ में फ़र्क बताया

पिता आत्मबल देता है


माँ की महिमा की गाथा

सब ग्रंथों ने गाई है

माँ की ममतामयी कहानियाँ

कितनी रोज सुनायी है

मगर पिता का त्याग बड़ा

और बड़ा दिल होता है

माँ दर्द दिखाती पर

पिता फूट-फूट के रोता है


माँ ने पहला पाठ पढ़ाया था

हर दम अच्छाई का

अंत हमेशा होता है यहाँ

फिर झूठ और बुराई का

माँ जीवन भर प्यार जतातीं,

पिता ख़्वाब संजोता है

और सफ़लता चूमें जब

बच्चे मन गदगद होता है


कितनी उम्मीदें पाली और

सपने भी संजोये थे

बच्चों की कामयाबी पे

जनक खुशी से रोये थे

जीवन की जीवटता का

जिम्मा यही उठाता है

आशाओं का दीप जला

लाश कंधों पे ढोता है


माँ के आँचल की कोमलता की

अलग पहचान है

और पिता के रूप मिला

शिक्षक बड़ा महान है

ठोंक-ठाक के पीट-पाट के

मजबूत बनाता है

जीवन में आदर्शों और

मूल्यों का महत्व यही बताता है


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