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अशांत मन

अशांत मन

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क्यूँ ये तलाश है

सब मेरे पास है

मन भी अशांत है

प्रश्न ये प्रशांत है

जो भी मेरे पास है

क्या वो अनंत तक

जो भी मै ढूंढ़ रहा

क्या उसपे मेरा अधिकार है

मनुष्य से लालसा या

लालसा से मनुष्य है

पशु और मानव का

क्या एक ही भविष्य है

मेरा अस्तित्व क्या है

क्यूँ मै हूँ यहाँँ

इसका है कोई उत्तर

क्या कोई जानता


क्या मै हूँ ग़लत

और जग ये निर्दोष है

क्या तभी दुख है यहाँ

और खुशी कई कोस है

क्यूँ जीवन सदा ही

एक विषम मझधार है

क्यूँँ खुद खेवैया है हम

जब दूसरो पे पतवार है…!


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