"अपनत्व"
"अपनत्व"
1 min
320
कहां गई मानवता,
इस मायाजाल में।
अपनत्व भाईचारा,
खो गया बाजार में।
ईर्ष्या, कटुता, बेईमानी का,
आज बोल वाला।
कहां गया वह मानव,
मेरे गांव का, भोला भाला।
बरगद के नीचे बैठकर,
पंचायत हो जाती थी।
दद्दा की दहलान पर,
गम्मत जम जाती थी।
कैसे भूले वे दिन,
मीठी बातें होती थी।
माना की गरीबी थी,
पर जिंदगी में खुशी थी।