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Monika Sharma "mann"

Abstract

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Monika Sharma "mann"

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अपनत्व का भाव भरें

अपनत्व का भाव भरें

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विचारों की ज्योति जला कर

अंधियारे को दूर करें

अपनत्व का दीपक बनाकर

स्नेह का बंधन बने।


राह में जो कंकर पड़े हैं

उनको चुनकर हटाना होगा

यह गैरों का भाव सबसे पहले

खुद से ही मिटाना होगा।


फूलों को जो तोड़ -तोड़ कर

हम फेकेंगे तो

गुलिस्ता कैसे बनाएंगे

प्यार से एक दूसरे का हाथ

थाम कर ही तो

काफिला बनाएंगे।


उस टूटते तारे से पूछो

किस जहां में वह जाएगा ?

सबकी तमन्नाओं का

सहारा वह बन जाएगा।


विचारों की ज्योति जलाकर

अंधियारे को दूर करें

अपनत्व का दीपक बनाकर

स्नेह का बंधन बने।


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