अपना सँघर्ष
अपना सँघर्ष
जो व्यक्ति यहां सँघर्ष करता है।
वो यहां जग-जंग जीता करता है।।
जो सिर्फ बातें ही किया करता है।
वो पराजय का सामना करता है।।
कोई भी लड़ाई,हथियारों से नही।
अपने हौंसलों से लड़ी जाती है।।
जो हौसला पक्का रखा करता है।
वो फ़लक तक झुकाया करता है।।
वही किस्मत रोना रोया करता है।
जो यहां श्रम कम किया करता है।।
जो अपने बाजुओं में दम रखता है।
वो पत्थर से नीर निकाला करता है।।
सफ़लता साधनों से थोड़ मिलती है।
यह तो सच्ची लगन,कर्म से मिलती है।।
वही सफलता प्राप्त किया करता है।
जो लगातार प्रयास किया करता है।।
जो सँघर्ष-आग नित तपा करता है।
वो यहां कुंदन जैसा दमका करता है।।
जो अपने भीतर की लड़ाई जीतता है।
वो साखी,खुद में खुदा पाया करता है।।