अपेक्षापूर्ति की आस
अपेक्षापूर्ति की आस
इंसान तभी ही गिरता है,
जब उठाने वाला कोई हो।
ज़िद्द तभी ही की जाती है,
जब ज़िद्द पूरी होना तय हो।
लापरवाही तब ही होती है,
जब फिक्र करने वाला हो।
परीक्षा भी उन्हीं की होती है,
जो परीक्षा के काबिल ही हो।
जीत की कीमत भी तभी है,
अगर हार का स्वाद चखा हो।
ज़िन्दगी का मूल्य समझते हैं,
जो मौत के करीब से गुज़रे हो।
आविष्कार की अहमियत है,
अगर उसकी ज़रूरत ही हो।
कश्ती वहीं ही तो डूबती है,
जहाँ हमेशा पानी कम हो।
अपेक्षा भी तभी पैदा होती है,
जब अपेक्षापूर्ति की आस हो।
