अन्तर्मन का गढना
अन्तर्मन का गढना
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नहीं है कोई पल,एक पल जो कहूं
किमां के साथ वह पल अनमोल थे ।
नहीं है प्यार से दुलारता कोई स्वर
कहूं कि बहुत ममत्व था।
ना बालों को सहला कर
नींद से उठाना या
ना कोई गोद में बिठाकर
मुंह में निवाला देना।
जैसा कि कहते हैं सभी
मां की तारीफ़ में अक्सर।।
*****
बैसी मेरी यादें नहीं ,
यादें मेरी अलग है दूसरों से।
जहाँ काट-छांट है एक माली सी
पौधे को देते अनूठा आकार।
सही मात्रा में देना संस्कार की खाद
सभ्यता का उज्ज्वल पानी।
और बना देना संसार रूपी उपवन की
सौन्दर्यमयी शोभा।
जहां डांट है रोकना-टोकना है उपदेश है,
एक कठोर शिक्षक की प्रतारणा है ।
है शिष्य को तराशने का लक्ष्य,
कुम्भकार -सा मिट्टी को आकार देते
सहेज-सहेज अन्तः -बह्र हाथों की उंगलियों से
अन्तर्मन का गढ़ना है।।
और फिर ढालकर सांचे में कर दिया तैयार
दुनिया में जीवन संघर्ष के लिए।।