अंतर्द्वंद
अंतर्द्वंद
मन विरक्त सा हो गया
सुर्ख सा देखा था जिसे
वही स्याह रक्त हो गया।
धरातल पर बैठे बैठे
दिमाग ने चक्कर लगाया
इस सारे ब्रह्मांड का
लेकिन कही कोई
जवाब न मिला।
जिसे ढूंढने निकला था
उसे भी नही पाया
दिल और दिमाग में
तीसरा विश्व युद्ध
शुरु हो चुका था।
तर्क पर तर्क चले
शब्दो के विषैले
सैकड़ों बाण निकले
कभी दिमाग था भारी
कभी दिल ने बाजी मारी।
लेकिन निष्कर्ष कुछ न
निकल सका दोनो में
और मैं इस युद्ध के थमने
के इंतजार में सोच रहा था,
काश वह दूर न होता
न ही यह अंतर्द्वंद होता।