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Rewa Tibrewal

Inspirational

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Rewa Tibrewal

Inspirational

अंतिम ज़िद

अंतिम ज़िद

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अपने बारे में आज सोचने बैठी तो...

कुछ समझ ही नहीं आया

मुझे क्या पसंद, क्या नापसंद

कुछ याद ही नहीं?

एक वो ज़माना था

जब माँ खिचड़ी या मेरी नापसंद की 

कोई भी चीज़ बनाती थीं तो मैं

हल्ला कर के सारा घर सर पर उठा लेती थी

और एक आज जो बन जाता है खा लेती हूँ...

न किसी चीज़ की ज़िद न कोई शिकायत... 

अब खीर बता कर

न कोई दूध चावल खिलाने वाला...

न गली पर कोई आइसक्रीम वाला

आवाज़ देने वाला

न ही मदारी का खेल कहीं नज़र आता...

न गोद में सर रख कर अब कोई पुचकारने वाला...

न बिमारी में रात भर सिरहाने बैठ सर सहला

हनुमान चालीसा पढ़ने वाला

 

माँ फिर से मुझे

मेरा बचपन लौटा दो न

बस ये एक अंतिम ज़िद

पूरी कर दो माँ!


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