अंत
अंत
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दूर
जहाँ तक नज़र जाती है
पानी ही पानी,
कोई ओर, कोई छोर
नहीं, मस्त
ठंडी हवाओं के साथ
समुद्र में उठती,
ऊंची उँची लहरों में
होड़ लगी है,
आगे निकलने की,
इसमे सफल होने पर,
लहरे इतराने लगती हैं,
अट्टहास करके कहती है,
लो मैने तुम्हें हरा दिया
लेकिन
हारे या जीते
मंज़िल तो किनारा ही है