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अनसुलझा रिश्ता

अनसुलझा रिश्ता

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ना जाने कैसी अजीब सी तपिश है तुझे चाहने में

अपना न होते हुए भी तूझे सिर्फ अपना बताने में

चाहता तो कर देता इज़हार अपनी मोहब्बत का 

पर डरता था ये दिल तुझे इतनी सी बात बताने में

सोचता हूँ शायद

शायद..कभी बता देता

तुझे भी समझा देता!!

वो बात पुरानी, इश्क़ गुलाबी 

किसी बहाने से ही 

तुझे भी अपनी एक तरफ़ा

इश्क़ की कहानी सुना देता 

तो शायद ये रिश्ता

इस तरह सुलझ कर भी

अनसुलझा न लगता

और मैं तेरा हो सकता हूँ 

पर तू मेरी नहीं

ये बात आखिर मैं भी जान गया हूँ..


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