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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Romance

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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Romance

अनंत

अनंत

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अकेलेपन को भींच मुट्ठी में

उसका अंत कर दूँगा।

ऐकाकी नहीं, एकांत कर दूँगा।


ख्यालों की, ठंडी बयार चलेगी यूं,

तरोताजा हर वक़्त, हर शख्स होगा।

पतझड़ को बसंत कर दूँगा।


पढ़ता हूं, कहानी अपनी ही,

पेड़ से पीठ टिका कर।

देख न ले कोई, मिटाता हूं,

तस्वीर तेरी बना कर।


दिल में छुपी है,

छुपी ही रहेगी, 

किसी को पाने की आरज़ू।

सीमाओं की जद में ना रहें,

इस प्रेम को मैं अनंत कर दूँगा।


कहानी का पात्र जो प्रश्नचिन्ह है,

काल्पनिक, अवास्तविक है,

उसे आज जीवंत कर दूँगा।

इस प्रेम को मैं अनंत कर दूँगा।


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