अनजानी भूल
अनजानी भूल
सुबह का भूला
लौट आये यदि घर शाम को,
नहीं कहलाए फिर 'सुबह का भूला'।
इंसान क्या है,गलतियों का पुतला।
हो जाती है जाने -अनजाने
उससे गलतियां पर,
मान ले उन्हें दोहराए नहीं,
मांग ले क्षमा फिर,
नहीं रहता वह 'सुबह का भूला'।
जीवन एक जंग और दुश्मन अनेक,
नैतिकता की राह पर रोड़े है देख।
मगर जीवन चलने का नाम है,
हो जाए गर भूल तो संभलने का नाम है,
लग जाए ठोकर तो उठने का नाम है।
गिरकर उठना उठकर चलना,
यह जीवन की रीत है भूल नहीं।
भूलो से जो सीख सका वही बोला,
लौट आए यदि शाम
न कहा ये फिर 'सुबह का भूला।'