अंजान सफर
अंजान सफर
एक अंजान सफर पर
बस यूहीं चलते जा रहे हैं,
मंज़िल का पता नही,
बढ़ते जा रहें हैं,
दो पल की ज़िन्दगी है
आज बचपन कल जवानी
फिर बुढ़ापे के साथ
खत्म ये जिन्दगानी।
जो पल मिला है,
उसे खुल के जियो
दोबारा ना लौटने वाली
ये जिन्दगानी
आओ जिन्दगी को गाते चले,
रूठो हुओ को मनाते चले
इस अंजान सफर में नये
साथी बनते चले।।
