अनेकता में एकता
अनेकता में एकता
राम, रहीम, ईश्वर,
अल्लाह और भगवान,
कहो वाहे गुरू या
बोलो जय श्री राम,
है एक ही पावन शक्ति के
अनेकों नाम, नफरत हटाओ,
प्यार बांटने का करो काम।
अनेकता में एकता है
हमारी पहचान,
धर्म, जाति, मजहब
चाहे कोई भी हो,
पर करो न किसी भी
इंसान का अपमान,
होगा तभी जन जन का
सम्पूर्ण कल्याण।
खुदा ने हम सबको
एक सांचे में ढाला,
नहीं करता वो
किसी में कोई भेद।
हम सब उसके बंदे
करते फिर क्यों,
इन्सान इन्सान में
बेवजह यूं भेद।
मंदिर, मस्जिद,
गुरूद्वारे की बहस से,
रहता है वो
कोसों कोसों दूर,
जो रखे उसमें
आस्था और विश्वास,
देता है अपनी
छत्र छाया वो भरपूर।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति,
नहीं रखती कोई भेदभाव,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
सबके लिए है सम भाव।
धर्म हमारे भले है जुदा जुदा,
पर सबमें है एक ही तत्व,
सबके दिलों में बहता है बस,
एक भारतीयता का भाव।