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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

अनदेखा - अनजाना सा

अनदेखा - अनजाना सा

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अनदेखा अनसुना सा 

एक स्मार्ट सा युवक 

एक दिन अचानक ही 

मुझसे यूं टकरा गया । 

उसकी नीली आंखों में 

जाने कैसा जादू सा था 

ये दिल उस पर आ गया । 

मेरे ख्वाबों में वो बांका 

बरबस रोज आने लगा 

मेरे दिलो दिमाग पर भी 

बादल बनकर छाने लगा 

मेरे मन में प्रेम की कैसी

बरसात सी होने लगी 

मैं उसकी मजबूत बांहों में 

डूबकर सपने पिरोने लगी ।

उसकी भारी आवाज में 

गजब का जादू सा था 

ये दिल उसके इश्क में 

अब बेकाबू सा था । 

धड़कनों पर उसका पहरा था

मन उसी के पास ठहरा सा था 

उसकी एक छुअन भर से 

मैं संवर संवर सी गई हूं 

उसकी मुहब्बत के रंग से

निखर निखर सी गई हूं । 

एक अनजाना सा डर लगता है

मेरी सखियों को वो जंचता है 

कहीं कोई उड़ाकर न ले जाये

मुझे गमों का बोझ ना दे जाये 

मगर मुझे दिल पर विश्वास है

मेरा प्यार ही तो मेरी आस है 

मेरी प्रीत अगर सच्ची है तो 

अनजाने को मेरा होना होगा 

अनदेखे अनसुने इस ख्वाब को 

अब तो सच होना ही होगा । 



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