अलविदा विद स्माइल
अलविदा विद स्माइल
रफ्ता रफ्ता कूच करना था,
दिल में घर ,बनाया क्यों था।
जश्न ए रवानगी में शामिल मै ऐसे,
गोया नज़र आया न था।
शिकवा किस बात का करोगे?
रोते -रोते, मैं मुस्कुराया भी था।
दास्तां खुद सुनाओगे एक दिन,
उस बर्बाद शख्स की , फक्र से।
हां वो , मुस्कुराया भी था।
