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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

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Dr Jogender Singh(jogi)

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अलविदा विद स्माइल

अलविदा विद स्माइल

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रफ्ता रफ्ता कूच करना था,

दिल में घर ,बनाया क्यों था।

जश्न ए रवानगी में शामिल मै ऐसे,

गोया नज़र आया न था।

शिकवा किस बात का करोगे?

रोते -रोते, मैं मुस्कुराया भी था।

दास्तां खुद सुनाओगे एक दिन,

उस बर्बाद शख्स की , फक्र से।

हां वो , मुस्कुराया भी था।



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