अलग ही मज़ा
अलग ही मज़ा
कभी ज़िंदगी की उलझनों में
उलझ कर तो देखो
समस्याओं का अपना
अलग ही मज़ा है।
कभी धूप में पसीना,
बहा कर तो देखो
ठंडे पानी का अपना
अलग ही मज़ा है।
कभी पेड़ों को
लगा कर तो देखो
छांव का अपना
अलग ही मज़ा है।
कभी किसी के आंसू
पोंछ कर तो देखो
मुस्कुराहटों का अपना
अलग ही मज़ा है।
कभी किसी की मदद
कर के तो देखो
दुआओं का अपना
अलग ही मज़ा है।