।।आज की नारी।।
।।आज की नारी।।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।
आदि काल से ही बनी हुई है,नारी ही सबसे सबला।
कभी ये बन कर चंडी काली,दुश्मन को संघारती है।
कभी ये बन कर लक्ष्मी बाई,अंग्रेजों को पछाड़ती है।
और सशक्त हो गई है नारी,मत समझो इसको निर्बला।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।
कभी ये बनती मीरा बाई,कृष्ण भक्ति में जाती डूब।
छोड़ राज महल सब अपना,जंगल में डेरा डाला खूब।
मन के इसके भावों को समझो,बनी रहेगी ये कमला।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।
जिस घर में नारी मुस्काती ,खिल उठते जीवन के फूल।
थोड़े से ही सुख में अपने,जाती जीवन के गम भूल।
जीवन के इस सारे पथ पर,बन कर रहती है सरला।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।
सम्मान जहाॅ॑ होता नारी का,वहाॅ॑ वैभव कभी न होता दूर।
नारी ही जग कल्याणी है,इसको भूलो न तुम कभी हुजूर।
मानव के हर दुख और दुख में,बन जाती है ये शीतला।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।
नारी है आधार धरा की,बिन नारी जीवन सूना।
बिन नारी बगिया सब सूखी,बिन नारी आंगन सूना।
बिन नारी घर बार नहीं है,बिन नारी जीवन गंदला।
कम न समझो तुम नारी को,न समझो इसको अबला।