अक्षय धानी है यह संस्कृति
अक्षय धानी है यह संस्कृति
अक्षय धानी है यह संस्कृति
भंडार भरा यहां हर गांव है
वीरों से, द्विजों से और
तपस्वी साधु संतों से
धुरन्धर धर्मज्ञातों से
और विश्वकल्याण के बातों से।
घिरा रहता है
आसमां यहां का
मातृ ममता के लहरों से
पावन यज्ञादि धुरों से
पवित्र्यमयि घूमते भवरों से
तपोवन वायु तत्वो से।
सनातन काल से परंपरा यहां
चिरंतन त्यांग से प्राण भरती है
कभी अवधूतों से कभी ऋषियों से
कभी अद्वैतों से कभी द्वैत मुनियों से
कभी पराक्रमी न्यौछावर शीरों से
कभी शांति उद्गाता महावीरों से।
मांगल्य धारा यहाँ बहती है
नगर नगर की सिंधु-गंगा से
पुनीता सभी कों बाँटती जाती
पंडवों से भरपूर उछलकर
दरियों से सृष्टि सजाती है
तृष्णा मिटाते अविचल बहती
सुगंध भरी माटी में।
मातृत्व वात्सल्य भरी है प्रकृति
अक्षय धानी है यह संस्कृति
अक्षय धानी है यह संस्कृति।