अक्षुण्ण भारत की एक छवि
अक्षुण्ण भारत की एक छवि
स्वतंत्रता का नित करूं प्राक्षालन,
भारत अखंड बने तब चैन मिले !
शहीदों की ये विरासत रहे अक्षुण्ण,
चाहे अंबर डोले और अवनि हिले !
शहीदों को नहीं स्वर्ग जाकर मोक्ष पाना,
माॅ॑ भारती की चरण धूलि माथे लगाना !
तिरंगा रहे लहराता, गोदी में माॅ॑ की सोना,
सदा भारत देश का सब गुणगान गाना !
तिरंगा हमारी शान है, झुकने न देना इसे ,
जब तक आपके प्राणों में बसती जान है !
श्वास श्वास में खुशबू बसी उसी की,
रक्त
में बह रहा मान और अभिमान है !
धर्म जाति पंथ प्रांत भाषा और भेद,
अभी भी इस देश में एक नहीं अनेक हैं !
आज अपनी भारत माता की देख दशा,
दुःख से हमारे दोनों नयन सजल हैं !
कोटि-कोटि योग्य पुत्रों के होते हुए भी,
अब तक हमारी राष्ट्र माता क्यों विकल हैं !
दे रही चुनौती माता हम सभी पुत्रों को,
किसमें कितना ये राष्ट्रप्रेम अविचल हैं !
चाहे कोई भी प्रान्त हो भाषा या परिवेश,
सबसे प्रिय और सबसे उत्तम अपना भारत देश!