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Prasoon Kunj

Tragedy

4.6  

Prasoon Kunj

Tragedy

अक्सर

अक्सर

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अक्सर ही अपने सवालों घिर जाता हूँ मैं 

अपने ही दायरे में बंध के रह जाता हूँ मैं 

सुनने की हिम्मत तो रखता हूँ ,

पर हमेशा कहने से घबराता हूँ मैं


डर लगता है कही टूट न जाये कोई रिश्ता 

इस लिए एक छोर से बंध जाता हूँ मैं 

अक्सर ही अपने सवालो घिर जाता हूँ मैं 

कैसी खुशी कैसा ग़म ,दोनों ही अब बेमानी से लगते हैं

खुशी में दर्द का एहसास और दर्द में ख़ुशी की आस लेकर ,

अपनों के बीच ही बेगानो सा नज़र आता हूँ मैं 

अक्सर ही अपने सवालो घिर जाता हूँ मैं।


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