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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

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Chandresh Kumar Chhatlani

Inspirational

अकेला

अकेला

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मैं अकेला सबके लिए कैसे करूँ?

अकेला तो सूर्य भी

नहीं कर पाता रौशन पूरी धरती को।

बची हुई धरा फिर भी चलना तो नहीं

छोड़ती।

घूम के घंटों में पा लेती है किरणों को।


कौन कहता है कि उगता है सूर्य?

वो तो धरती है जो मिलवाती है

तुम्हें सूर्य से।

बदल देती है तारीख।

और आश्चर्य!

तुम पूजते हो उगते सूर्य को।


अकेला सूर्य क्या करे?

घनघोर आग का भार गति बाधित

करता ही है।

जानो,

मेरे अंतर में भी बहुत तरह की आग है।

मुझे करती है गतिहीन।

तुम धरा हो... किरणें तुम्हें मिलेंगी ही।

लेकिन तब मुझे मत पूजना।

वह तुम्हारा सामर्थ्य है, मेरा नहीं।

काश होता।


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