अकेला चलता हूँ
अकेला चलता हूँ
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अकेला चलता हूँ
ठोकर खाता हूँ
गिरता हूँ
उठता हूँ
फिर चलता हूँ
चोट लगती है
दर्द होता है
बंद कमरे में रोता हूँ
आँसू भी गिरते हैं
हाँ ! आँसू गिरते हैं
बिल्कुल मोती की तरह
जो महज़ आँसू नहीं होते
मेरे अधूरे सपने होते हैं
जो अश्रु का रूप लेकर
मेरी आँखों से
अनायास हीं बह आते हैं
मैं उन्हें खूब निहारता हूँ
अपने हाँथों से पोछता हूँ
एक लम्बी साँस लेता हूँ
फिर मन में एक नए तरंग लिए
अपनी आँखों में नए
ख्वाब सजाता हूँ और
चल पड़ता हूँ उस राह की
ओर जहाँ मुझे जाना है
जहाँ मेरी मंज़िल है।